डार्क वेब, इंटरनेट का वह हिस्सा है जहां पर लोग, कानून लागू करने वाली एजेंसियों और अन्य लोगों से अपनी पहचान और जगह की जानकारी छिपा सकते हैं. इस तरह, डार्क वेब का इस्तेमाल चोरी की गई निजी जानकारी को बेचने के लिए किया जा सकता है.
डार्क वेब को कैसे ऐक्सेस किया जा सकता है?
डार्क वेब को ऐक्सेस करने के लिए, Google Search या Chrome और Safari जैसे ब्राउज़र इस्तेमाल नहीं किए जा सकते. इसके बजाय, आपको खास तौर पर इसी काम के लिए डिज़ाइन किए गए सॉफ़्टवेयर, जैसे कि Tor या I2P का इस्तेमाल करना होगा.
डार्क वेब का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
डार्क वेब का इस्तेमाल अक्सर गैरकानूनी गतिविधियों में किया जाता है. जैसे, ड्रग तस्करी और डेटा का गलत इस्तेमाल. हालांकि, सरकारी एजेंसियां भी डार्क वेब का इस्तेमाल इन कामों के लिए करती हैं:
- गोपनीय जानकारी शेयर करने के लिए
- अन्य सकारात्मक गतिविधियों के लिए
डार्क वेब और डीप वेब के बीच का अंतर जानें
अक्सर डार्क वेब को ही डीप वेब मान लिया जाता है, जो कि गलत है.
डीप वेब, इंटरनेट के उन हिस्सों को कहा जाता है जिन्हें Google Search जैसे सर्च इंजन की मदद से ऐक्सेस नहीं किया जा सकता. डीप वेब में डार्क वेब के अलावा ऐसे पेज भी शामिल होते हैं जिन्हें तब ही ऐक्सेस किया जा सकता है, जब आपने उनमें रजिस्टर या साइन इन किया हो. जैसे, Gmail और Facebook के ज़्यादातर कॉन्टेंट को बिना रजिस्टर या साइन इन किए ऐक्सेस नहीं किया जा सकता.
डीप वेब के दायरे में 90 प्रतिशत इंटरनेट आता है, जबकि डार्क वेब में 0.01 प्रतिशत से भी कम इंटरनेट शामिल है.
निजी जानकारी किस तरह डार्क वेब पर उपलब्ध होती है?
डेटा का गलत इस्तेमाल और मैलवेयर, इन दो आम तरीकों से डार्क वेब पर निजी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है.
डेटा के गलत इस्तेमाल का मामला तब माना जाता है, जब कोई हैकर किसी कंपनी के डेटाबेस से उपयोगकर्ताओं का डेटा चोरी कर लेता है. बाद में, इस डेटा को पहचान चोरी करने वाले लोगों को डार्क वेब पर बेचा जा सकता है.
मैलवेयर एक तरह का सॉफ़्टवेयर होता है, जो कंप्यूटर को नुकसान पहुंचा सकता है. मैलवेयर, आपके कंप्यूटर से संवेदनशील जानकारी चुरा सकता है, धीरे-धीरे कंप्यूटर को धीमा कर सकता है, और आपके खाते से नकली ईमेल भी भेज सकता है. जानें कि मैलवेयर से कैसे बचें.
Google को कैसे पता चलता है कि डार्क वेब पर कौनसी निजी जानकारी मौजूद है?
डार्क वेब पर कौनसी जानकारी मौजूद है, यह पता लगाने के लिए Google किसी तीसरे पक्ष के वेंडर की मदद लेता है. इस वेंडर के पास डेटाबेस का ऐक्सेस होता है. इससे पता चलता है कि फ़िलहाल डार्क वेब पर कौनसा कॉन्टेंट उपलब्ध है.